Wednesday, September 29, 2010

रिश्ता

  • कहानी -  मनोज कुमार

मिसेज मेहरा आज कई दिनों के बाद अपनी पुरानी सहेली विमला के घर आई थी. पहले वे अक्सर यहाँ आया करती थी मगर इस बार कई दिनों के बाद आना हो रहा था.
दोनों ड्राइंगरूम में बैठी बातें कर रही थी तभी विमला की बड़ी बेटी पूनम वहां चाय की ट्रे लेकर आ गई. पूनम ने मिसेज मेहरा का हाथ जोड़कर अभिवादन किया तो वे खुश रहने का आशीर्वाद देकर विमला से बोली- "तुमने पूनम की शादी के बारे में क्या सोचा है?"
"सोचना क्या है?" विमला ने कहा-"अभी तो यह बी.ए. कर रही है. कहती है इसके बाद फैशन डिजायनिंग का कोर्स करूंगी. शादी के लिए इसके पापा ने दस लाख का फिक्स डिपाजिट करा ही रखा है तो हमें कोई चिंता नहीं है."
मिसेज मेहरा चाय का एक घूंट लेकर थोडा ठहरकर बोली- "विमला, बुरा न मानों तो इसी सम्बन्ध में मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूँ."
"तो कहो न. चुप क्यों हो?"
"तुम तो जानती हो क़ि पूनम को हमारे घर में सभी अच्छी तरह जानते हैं और पसंद भी करते हैं. मैं चाहती हूँ क़ि हमारी यह दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाये?"
"क्या मतलब?" विमला ने चौंक कर कहा.
"मैं अपने बेटे सुधाकर के लिए तुमसे पूनम का हाथ मांगती हूँ." मिसेज मेहरा बोली.
जबकि उनकी बात सुनकर विमला ने बदले स्वर में कहा- "बुरा मत मानना प्रभा, दरअसल पूनम के पापा तो उसका विवाह किसी ऊँचे रसूख वाले घराने में करना चाहते हैं. वे चाहते हैं क़ि उनकी बेटी जहाँ जाए वहां राज करे. वे किसी साधारण परिवार में उसका रिश्ता नहीं करना चाहेंगे. फिर हमारे और तुम्हारे स्टेटस में अंतर भी तो कितना है..."
मिसेज मेहरा को अपनी सहेली से ऐसे किसी जवाब क़ि अपेक्षा नहीं थी. वह एकाएक कुछ कह नहीं सकी जबकि विमला ने कहना जारी रखा था- "तुम्हारे पति एक सामान्य शिक्षक हैं और सुधाकर भी तो अभी कुछ करता नहीं... पता नहीं आगे चलकर वह कुछ करेगा भी या नहीं...?"
"सुधाकर सिविल सर्विस क़ि तयारी कर रहा है." मिसेज मेहरा से रहा नहीं गया तो वह बोल उठी- "और तुम तो जानती ही हो क़ि पूनम और वह दोनों एक दुसरे को पसंद भी करते हैं."
"आजकल के ज्यादातर लड़के सिविल सर्विस की तैयारी करते ही देखे जाते हैं." विमला थोडा हंसकर बोली- "मगर सफल कितने होते हैं? लाखों में चंद गिने हुए कुछ खुशकिस्मत लोग...! और रहा सवाल इन दोनों क़ि पसंद का, तो तुम यूं क्यों नहीं कहती क़ि तुम्हारी नजर उन दस लाख रुपयों पर है जो पूनम के साथ उसके दहेज़ में जायेंगे!"
मिसेज मेहरा को उम्मीद नहीं थी क़ि उसकी खास सहेली उससे इस तरह का बर्ताव भी कर सकती है. उसे विमला क़ि बातें सख्त नागवार गुजरी. स्वयं को अपमानित सी महसूस करती हुई वह वहां से चली गई.
जबकि दरवाजे के पीछे खड़ी होकर सारा वार्तालाप सुन रही पूनम को अपनी माँ का यह व्यवहार बहुत ही बुरा लगा. उसे अपनी माँ पर काफी क्रोध आ रहा था. आखिर क्यों उसने उनसे इस तरह क़ि बाते कही? यह सच था वह सुधाकर को पसंद करती थी, मगर इंकार करने के और भी तो तरीके होते हैं. इस तरह उनका अपमान करना क्या उचित था? शायद अब वे दुबारा यहाँ कभी न आयें.
फिर इस घटना को हुए काफी समय बीत गया.
इस बिच पूनम ग्रेजुएशन की पढाई पूरी कर फैशन डिजायनिंग के कोर्स में दाखिला ले चुकी थी. घर वाले उसके लिए ऊँचे घराने के किसी योग्य वर की तलाश में जुट चुके थे.
एक दिन अख़बार में खबर छपी क़ि उनके शहर से पहली बार किसी ने आई.ए.एस. क़ि परीक्षा उत्तीर्ण की थी. मालूम हुआ क़ि वह कोई और नहीं बल्कि सुधाकर ही था जो क़ि अपने अंतिम प्रयास में फाइनेली सिलेक्ट हो गया था. उसके घर पर बधाई देने वालों का ताँता लग गया था.
उसी शाम पूनम ने अपनी माँ को पापा से कहते सुना- "सुनते हो, मिसेज मेहरा का लड़का सुधाकर आई.ए.एस. हो गया है. वही जो एक दिन पूनम का हाथ मांगने हमारे घर आई थी. मैं आज ही यह रिश्ता लेकर उनके पास जा रही हूँ."
जब पूनम ने ऐसा सुना तो उसे यकीन नहीं हुआ क़ि उसकी माँ ऐसा कह रही है. जिसने खुद एक दिन इस रिश्ते को तोड़ दिया था. आज वह इस रिश्ते को फिर से जोड़ने का प्रयास कर रही थी सिर्फ इसलिए क़ि सुधाकर अब कोई सामान्य प्रतियोगी नहीं, बल्कि आई.ए.एस. बन चुका था.
पूनम आज पहली बार किसी बात को लेकर अपनी माँ के विरोध में खड़ी थी- "माँ, अब तुम वहां मत जाओ...."
"क्यों?" विमला ने हैरानी से पूछा.
पूनम थोड़ी देर तक चुप रही. फिर नपे तुले शब्दों में बोली- "माँ, जिस सम्बन्ध को तुम पहले ही तोड़ चुकी हो उसे दुबारा लेकर तुम्हारा वहां जाना ठीक नहीं."
"ओह." विमला ने हंसकर कहा-"बेटी, तुम दुनिया के रीती-रिवाजों को जानती नहीं. जिसे गरज पड़ती है, उसे थोडा झुकना ही पड़ता है. सब ऐसा ही करते हैं. यही दुनिया का चलन है."
पूनम माँ के बदले हुए रूप को देख रही थी. माँ के जवाब का उस पर कोई असर नहीं हुआ था. कदाचित वह जान रही थी क़ि वहां से क्या जवाब मिलेगा?
रात को जब माँ मिसेज मेहरा के यहाँ से लौटी तो उनका चेहरा बता रहा था क़ि उन्हें अपने मिशन में कामयाबी नहीं मिली है. खाने के समय वे पापा से कह रही थी - "लड़का आई.ए.एस. बन गया है तो मिस्टर और मिसेज मेहरा के तो पाँव ही जमीं पर नहीं हैं. जब मैंने उन्हें पुराने रिश्ते का ध्यान दिलाया तो वे कहने लगी क़ि उनके पास बड़े-बड़े रिश्तों के आफर आ रहे हैं. लोग पच्चीस लाख नगद और एक कार देने क़ि बात कर रहे हैं."
वे काफी देर तक इस मामले को लेकर नुक्ताचीनी करते रहे और अन्दर दरवाजे से टेक लगाये पूनम नम आँखों से उन्हें सुन रही थी.

प्रकाशित - शुभ तारिका