Monday, January 3, 2011

नववर्ष में वाल्मीकि नगर की सैर

नववर्ष के आते ही उत्तर बिहार का कश्मीर कहे जाने वाले  प्राकृतिक छटा से भरपूर वाल्मीकि नगर में सैलानियों की आदम रफ्त बढ़ जाती है। नये परिसीमन के बाद देश की नंबर एक लोकसभा क्षेत्र व राज्य की नंबर एक विधानसभा क्षेत्र घोषित होने के बाद से इसे एक विशेष पहचान मिली। वैसे यह क्षेत्र अपने राष्ट्रीय व्याघ्र परियोजना एवं प्राकृतिक सुन्दरता के कारण पहले से ही जाना-पहचाना जाता था। जिला मुख्यालय बेतिया से 110 किलोमीटर और प्रखण्ड मुख्यालय बगहा से लगभग 40 किलोमीटर दूर भारत-नेपाल सीमा पर स्थित यह कस्बाई इलाका पूर्व में `भैंसालोटन´ के नाम से जाना जाता था। यहां से लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का प्रसिद्ध आश्रम है, जो नेपाल के चितवन में पड़ता है। यहां आने वाले सैलानी वहां जाना नहीं भूलते। माना जाता है कि राम ने जब सीता का परित्याग किया तो वे यहीं महर्षि  के आश्रम में शरण ली थी और लव-कुश को जन्म दिया था। महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि होने के कारण ही इस क्षेत्र को वाल्मीकि नगर के नाम से जाना जाने लगा।
सूर्यास्त का एक नजारा
यहां कई ऐतिहासिक मन्दिर भी हैं- जिनमें प्रमुख है कॉलेश्वर मन्दिर, जटाशंकर मन्दिर, नरदेवी मन्दिर इत्यादि। विशिष्ट अवसरों पर वहां श्रद्धालुओं का जमावड़ा जुटता है।
1962 में देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने यहां आकर गण्डक फाटक बांध की नींव रखी थी। वह पुल भारत और नेपाल की सीमा को आपस में जोड़ता है। दोनों देश के निवासी इस रास्तें बेरोक टोक आते-जाते हैं। अलबत्ता अब यहां एस.एस.बी. की तैनाती कर दी गई है जो लाने-ले जाने वाले सामानों की चौकसी करती है। पूल के उस पार से नेपाल की राजधानी काठमाण्डू के लिए सीधी बसें चलती है।
वनभोज के लिए आये सैलानी
प्रतिवर्ष पहली जनवरी को सीमावर्ती नेपाल, उत्तर प्रदेश एवं बिहार के पर्यटक भारी संख्या में यहां आते है और पिकनिक का मजा लेते हैं। इधर कुछ  वर्षों से वन विभाग के निषेध के कारण जंगल में पिकनिक मनाने पर रोक लग चुकी है। फिर भी आने वाले सैलानियों के हौसलं बुलंद रहते हैं और वे गण्डक नदी के किनारे पर्वत द्वीप के निकट वनभोज का मजा लेते हैं और नाच-गाना करते हैं।
नववर्ष की मस्ती में थिरकते युवा


वाल्मीकि आश्रम 
 



जटाशंकर मंदिर
 

कालेश्वर  मंदिर
 

नरदेवी मंदिर
 
विकास की दृष्टि से देखा जाये तो यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है। यहां बुनियादों सुविधाओं का घोर अभाव है। पर्यटन के विकास की यहां असीम संभावनाएं है। लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण कोई विशेष प्रयास नहीं होता। खूबसूरत प्राकृतिक वादियों के कारण फिल्मकार यहां आकर्षित होते हैं लेकिन असुविधाओं के कारण ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते। भोजपूरी फिल्मों एवं अल्बमों की शूटिंग यहां प्राय: होती रहती है। उन्हें बढ़ावा देने हेतु यहां सुविधाएं बढ़ाने की दरकार है। कुछ समय पूर्व एक थ्री स्टार होटल का निमार्ण कार्य शुरू होने की बात चली थी, लेकिन सिर्फ बाउण्ड्री ही बन सकी। उससे आगे का काम ठण्डे बस्ते में चला गया। विकास के नाम पर इधर कोई काम हो सका है तो वह है सड़क निर्माण। बगहा से वाल्मीकि नगर की 40 किलोमीटर की दूरी पहले खराब सड़क के कारण जहां 3 से 4 घंटे में पूरी होती थी, वह सड़क अब लगभग 80 फीसदी बन जाने के कारण एक से डेढ़ घंटे में पूरी हो जाती है। कहा जा सकता है कि इसका श्रेय राज्य की वर्तमान सरकार को जाता है लेकिन यहां क्षेत्र के विकास हेतु अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकि है। तभी यहां की प्राकृतिक छटा में वास्तविक हरियाली आयेगी।