Thursday, November 25, 2010

प्रजातंत्र होने के मायने

एक पुरानी कहावत है कि जैसी प्रजा वैसी सरकार! इस बार बिहार विधानसभा के चुनाओं में यहाँ कि जनता ने जिस एकजुटता का परिचय दिया है वह अभूतपूर्व है. यहाँ के चुनाव परिणामों पर सिर्फ बिहार कि ही नहीं बल्कि पूरे देश - दुनिया की निगाहे टिकी हुई थी. और परिणाम भी ऐसा आया कि हारने वाले तो दूर जीतने वाले भी आश्चर्यचकित हैं. कहना न होगा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है. बिहार की जनता का फैसला है.
नीतीश कुमार की नई और मौलिक सोच एवं विकसित बिहार के सपने ने उन्हें सब से अलग किया और जीत का सेहरा पहनाया. सो, बधाई मिलनी लाजिमी है. मिलनी भी चाहिए. एक सामान्य मजदूर से लेकर आम घरेलु महिला तक , छात्र तबका, व्यवसाई वर्ग सभी के खिले हुए चेहरे बता रहे हैं कि उनकी चाहत क्या थी?
243 सीटों में से 206 सीट जीतना अपने आप में एक करिश्मा है. ऐसा यहाँ के इतिहास में संभवतः कभी नहीं हुआ. यह प्रचंड बहुमत सिद्ध  करता है कि विकास के मुद्दे पर सब एकजुट हैं.
लोगों ने अपना काम कर दिया. अब उनकी आशाओं पर खरा उतर कर दिखाना सत्ता पार्टी का काम है. आगामी पांच वर्षों में बिहार विकास कि एक नई इबारत लिखेगा, ऐसा सबको भरोसा है. इसी भरोसे कि बदौलत एन डी ए के खाते में यह जीत आई है.  ऐसी जीत से उत्साहित जरूर होना चाहिए, हां, उन्हें मद से दूर रहना होगा.
लालू यादव और रामविलास पासवान को इस जीत पर शक हो रहा है. उनका कहना है कि वे इसकी जांच करेंगे. शायद वे भूल रहे है कि ऐसी ही जीत व्यक्तिगत तौर पर कभी उन्हें भी मिली थी. तब उन्हें अपनी जीत पर संदेह नहीं हुआ था. सत्ता के मद में अंधे होने पर यह बात भूल जाती है कि जो कुर्सी उन्हें जनता कि सेवा करने के लिए मिली है, वह चिरस्थाई नहीं है. अगर वे अपनी राह से भटकेंगे तो यही जनता उन्हें सत्ता से बेदखल भी कर सकती है. यही प्रजातंत्र के मायने है.