जीवन की संध्या बेला में
आज सुबह अख़बार पढ़ते हुए एक संदेश पर जाकर नजर ठिठक गई. पता चला आज एक अक्तूबर है.और इस दिन दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जा रहा है.
हम सब अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने व्यस्त हो चले हैं कि आस पास कि छोटी-छोटी घटनाओं को दरकिनार करते चलते है. बड़े- बुजूर्गों कि अहमियत किसी पुरानी गाड़ी कि भांति कमतर होती जा रही है. किसी के पास सोचने का भी वक्त नहीं है. ये दिवस हमें एहसास दिलाते हैं कि, जरा ठहरें. हमारे आस-पास जो कुछ अनमोल है, उसकी क़द्र करना सीखें- अन्यथा एक दिन हमारा भी वही हश्र होगा.
मुफ्त में बुजूर्गों को सम्मान कि औषधि देना भी हम पर भारी गुजरता है. देखने सुनने में आता है कि विदेशों में बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो माता-पिता को ओल्ड एज होम में भेज देते है. उनकी देखभाल करना पसंद नहीं करते. यह कैसी मानवीयता और कैसा धर्म?
मुफ्त में बुजूर्गों को सम्मान कि औषधि देना भी हम पर भारी गुजरता है. देखने सुनने में आता है कि विदेशों में बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो माता-पिता को ओल्ड एज होम में भेज देते है. उनकी देखभाल करना पसंद नहीं करते. यह कैसी मानवीयता और कैसा धर्म?
भारत अपनी संस्कृति का रक्षक और परम्पराओं का पोषक देश माना जाता है. यह श्रवण कुमार का देश है. यहाँ बड़े-बुजूर्गों को परिवार में अहमियत दी जाती है. लेकिन यहाँ भी मान्यताएं दरक रही है. हम अपने मूल्यों को कहीं विस्मृत कर रहे हैं. जिसने कभी हमें पुष्पित-पल्लवित किया, ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया- फिर उनके जीवन कि संध्या बेला में अपनी बारी आने पर बेरुखी दिखा कर कौन सा सुख हासिल कर सकते हैं?
हमारे यहाँ परम्परा रही है कि 25 वर्ष हम बच्चों को पालते हैं और दूसरे 25 वर्ष पुत्र माता-पिता को पालता है। लेकिन परिवार प्रथा टूटती जा रही है इसी कारण आज माता-पिता अकेले पड़ गए हैं।
ReplyDeleteआदरणीया अजित जी, टिप्पणी हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteवृद्ध दिवस पर बढ़िया आलेख... आभार.
ReplyDeleteअब हिंदी ब्लागजगत भी हैकरों की जद में .... निदान सुझाए.....
महेंद्र जी, आपका धन्यवाद
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