Wednesday, December 22, 2010
परिवार
एक गाड़ी है
इसमें कई कल-पूर्जे होते हैं
ये सभी एक साथ काम करते हैं
तो गाड़ी आगे बढ़ती है
बढ़ती है, बढ़ती जाती है।
जब तक इसके हर अंग
काम करते हैं साथ-साथ
गाड़ी चलती जाती है
अनवरत बढ़ती है
अपनी मंजिल की ओर!
अगर कोई कल-पूर्जा,
काम करना बन्द कर दे
तो वही गाड़ी
चल सकती है कभी?
अपनी रफ्तार से चल पाना
उसके लिए तब
मुश्किल हो जाता है।
बिना मंजिल तक पहुंचे ही
बीच रास्ते में ही वह
रूक सकती है।
ं ं ं ं ं
इसी तरह
परिवार एक गाड़ी है
विभिन्न सदस्य इसके
अलग-अलग कल-पूर्जे हैं
सभी के अपने हिस्से का
अपना-अपना काम है।
अगर कोई हिस्सा
अपना काम न करे
तो क्या परिवाररूपी गाड़ी
आगे बढ़ सकती है कभी?
वह भी गाड़ी की ही भांति
बीच रास्ते में ही
रूक सकती है।
आगे बढ़ना उसके लिए
मुश्किल हो जाता है।
इस परिवाररूपी गाड़ी को
आगे बढ़ाने के लिए
जरूरी है कि
इसके सभी कल-पूर्जे
अपने हिस्से का काम
करते रहें अनवरत!
यहां एक बात
विचारणीय है कि
अगर मशीनरूपी गाड़ी का
कोई भाग काम नहीं करता
तो उसे बदला जा सकता है
लेकिन परिवार में
ऐसा फेर बदल
सम्भव नहीं होता।
ऐसी विकृति यहां
एक दरार पैदा करती है!
खराब कल-पूर्जे
बदले नहीं जाते यहां
बल्कि उन्हें किया जाता है अलग
और पैदा हो जाता है
हंसते-खेलते परिवार में
एक बिखराव.....!
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आपने परिवार को बहुत सुन्दर्ता से परिभाषित किया है………शुभकामनाये
ReplyDeleteअति सुन्दर। पहली कविता मुबारक हो।
ReplyDeleteare bhai aap to chhupa rustam nikle
ReplyDeletesabse pahle word verification hata de comment dene me asubidha hoti hai
@Ehsas...
ReplyDeleteकविता लिखता तो नहीं, बस कह सकते हैं कि आपकी सोहबत का असर है.
@ Arun Sathi...
भैया, आप इस ब्लॉग पर पधारे, बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.
संजय जी, आपका आभार.
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